गीता कर्म योग
बेकाबू दंगे को
कुचलने सेना की एक टुकड़ी को भेजा गया था .दोनों समुदाय एक दुसरे के खून के प्यासे
हो रहें थें .सैनिक रघुवीर के हाथ में मानों बन्दूक जम सी गयी .किसकी तरफ दुनाल का
निशाना लगाये . उसने तो इन दोनों की ही रक्षार्थ बन्दूक उठाया था और आज उसकी टुकड़ी
को भेजा गया था इनदोनों से देश को बचाने . तभी एक छोटा सा बच्चा ,दंगाइयों की भीड़
में उसे दिखा .रक्त पिपासु, उन्मादी भीड़ बालक से बेखबर एक दूजे को समाप्त करने पर
आमादा थी .रघुवीर दौड़ कर उस बच्चे को उठा, सीने से लगा द्रवित हो गया .अपनी टुकड़ी
के सबसे कड़क लड़ाकू व्यक्ति को पसीजता देख मनोहर का भी जी भर आया . पर जी ना भरा तो
दंगाइयों का जो प्यार की सरजमीं पर नफरत की फसल काट रहें थें .
“न मैं अपने देश को इस बालक की भाँति निर्बल
और असहाय नहीं देख सकता .देश की शान्ति और सौहार्द के विरोधी को समूल कुचलना भी
मेरा फ़र्ज़ है “,
यह सोचते हुए रघुवीर
ने अपने साथियों के साथ जोर से हुंकार भरा और टूट पड़ा उन वहशियों पर .
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