सोमवार, 23 नवंबर 2015

संस्कारों की बुनियाद

संस्कारों की बुनियाद
“साले कमीने कुत्तें .....”
अपने चार वर्षीय पुत्र अंकुर के मुख से ये सुन डॉक्टर मनीष और डॉक्टर महिमा सन्न से रह गए .
अपनी सारी पढाई-लिखाई और संस्कारों की उन्हें धज्जी उड़ते दिख रही थी .दोनों के आँखों से नींद उड़ गयी कि अतिव्यस्तता का खामियाजा यूं भुगतना होगा.
दुसरे दिन जब दोनों अस्पताल से वापस आये तो देखा, माँ –बाबूजी आयें हुए हैं और नन्हा अंकुर दादी की गोद में बैठ कोई कविता याद कर रहा है
“कुछ दिनों से जब भी अंकुर से फोन पर बातें होती वह अजीब अजीब शब्द बोलता,हम समझ गएँ कि नौकरों की सोहबत हमारे परिवार की बुनियाद कमजोर कर रही है “,बाबूजी ने कहा .
“अब हम दोनों की जिम्मेदारी है अंकुर “
महिमा और मनीष दौड़ कर माँ बाबूजी से लिपट गएँ .
सोते वक़्त दादी संग अंकुर की आवाजें आ रहीं थी ,” नन्हा  मुन्ना राही हूँ ......”.

अपने जीवन की नींव मजबूत करने वालों के हाथों में अपने भविष्य की मजबूत बुनियाद बनती देख मनीष अब निश्चिन्त था .









(चित्र साभार- गूगल ) 

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