..... शेष है
पाकिस्तान से एक हाई कमिशन टीम दिल्ली आई हुई थी क्षेत्रीय रिश्तों को मजबूत करने .दुनिया भर के पत्रकारों की नजर थी .एक से एक खुर्राट बुड्ढे थे इस द्विपक्षीय वार्ता में .वार्ता नाकामयाब होनी थी सो हो के रही . लन्दन के एक पत्रकार ने अपने पत्र के लिए भेजा .
"हमारे पूर्वजों ने बिलकुल सही किया इन्हें बाँट कर ,ये वास्तव में दो अलग अस्तित्व हैं "
तभी दोनों दल के सदस्य पास से गुजरें ,अस्फुट बातें कान में आ रहीं थी ......
"रामप्रसाद जी ,कराची से आपके दादा जी के पडोसी ने आपकी पुत्रवधू के लिए कुछ उपहार भेजा है ."
"बशीर साहब आज रात आपको घर आनी ही होगी,अम्मा बिस्तर पर पड़ी हैं अपनी बहन के खून,आपको को देख शायद कुछ और जी जाएँ "
एक दूसरी आवाज, "मैं तो आज शाम ही पराठें वाली गली के श्री गया प्रसाद के यहाँ जाऊंगा ,काका जी मरते दम उनके पराठों के स्वाद को याद करतें रहें "
......... और भी कई आवाजें अंग्रेज की कानों तक पहुँच रहीं थी ,उसने अपने पत्र को फिर लिखा ,
"इतना बंटने के बाद भी कुछ बंधन आज भी शेष हैं जो मानचित्र और सियासत से परे है .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें