एकांश आज़ादी का
रामाशीष जी के पिता जी ,नौजवान क्रातिकारियों के विचारधारा से बड़े
प्रभावित थे और अपनी सरकारी नौकरी छोड़ उनकी सोहबत में विभिन्न कार्यकर्मों में
हिस्सा लेते. काकोरी कांड के बाद उनपर सम्राट के
विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने और लूटपाट के आरोप में काला-पानी की
सजा सुनाई गई थी .उनके पीछे पूरा परिवार दाने दाने को मुहताज हो गया .माँ ने बड़ी
मुश्किलों से जिंदगानी की गाडी को खींचा और देशभक्ति की खून से बच्चों को सींचा.१८-१९ वर्ष
का होते होते रामाशीष जी, स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय हो गए .९ अगस्त १९४२ को
गाँधी जी के “करो या मरो “ आन्दोलन में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया .जेल में सूरज
की रौशनी को तरस गए. घर पर एक क्रन्तिकारी की बीवी और एक आन्दोलनकारी की बूढी माँ
आस का दीपक जलाये पथराई आँखों से सिधार गयी दोनों के इन्तेजार में .पांच सालों के
बाद,देश को आज़ादी मिली .अन्य कैदियों के संग रामाशीष जी को भी रिहा किया गया .
शहीदों के खून से लाल आसमान पर तिरंगा शान से
फहरा रहा था .घुटनों के बल झुक धरती को चूम,रामाशीष जी देखा झंडे से स्मृतियों के
फूल झड़ रहें हैं ,एक धुंधला सा चेहरा बाबूजी का भी था .
उनकी
तुरबत पर नहीं है एक भी दीया,
जिनके खूँ
से जलते हैं ये चिरागे वतन।
जगमगा रहे
हैं मकबरे उनके,
बेचा करते
थे जो शहीदों के कफन।।
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