शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

दलदली जमीं पर ख्वाबों की बुनियाद

दलदली जमीं पर ख्वाबों की बुनियाद

यामिनी हर दिन अपनी बेटी को लोरी सुनती थी ,जो आम लोरी से कुछ हट के होता था .
“मैं कम पढ़ी लिखी ,मजबूर और अकेली थी “.
तुम तन्हा नहीं ,मैं हूँ ना
“मेरे पास धन नहीं सिर्फ तन की दौलत थी “
तुम इतनी कंगाल नहीं होगी कि तुम्हे अपनी दुर्लभ तन बेचनी पड़े .
“संसार में कोई काम छोटा नहीं होता ,मैं भी हमदोनों की पेट की खातिर ही इसे काम समझ करती हूँ .”
तुम इतना सक्षम होगी कि छोटे काम तुम्हे करने ही नहीं होंगे.
“मेरी बेटी मैं इस दलदल में ख्वाबों की एक बीज बो रहीं हूँ,उम्मीदों की बुनियाद इतनी मजबूत इरादों से बनी होगी कि खवाबों का महल फौलादी होगा   “.
जाने बच्ची ने क्या समझा पर हाथ –पैर पटक चमकती आँखों से,”हूँ हूँ हाँ “ की आवाजें  यामिनी की इरादों को बुलंद कर ग

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