पल वो पल
(चित्र कथा )
प्रज्ञा का मिजाज़ बुरी तरह से बिगड़ा हुआ था. बात ही कुछ ऐसी हो गयी थी. महीनो पहले से अंदमान-निकोबार द्वीप घूमने की सारी तैयारियां ध्वस्त हो चुकी थी. जिन्दगी की मशरूफियत से ब- मुश्किल ये वक़्त चुराए थे. कल शाम ही पोर्ट ब्लेयर के इस ख़ूबसूरत रिसोर्ट में प्रज्ञा अपने पति प्रसून और दोनों बच्चों के साथ पहुंची थी कि रात में अचानक घनघोर बारीश शुरू हो गयी. मौसम विभाग की चेतावनी आ गयी कि कोई बाहर ना निकले सो मजबूरन रिसोर्ट के कमरे में कैद प्रज्ञा चिडचिड़ी हो सारा गुस्सा प्रसून पर निकाल रही थी. प्रसून और बच्चे सर झुकाए उसकी बातों को सुन रहें थें मानों सारा कसूर उनका ही हो. झल्लाती प्रज्ञा अब समवेत स्वर से अपनी दगाबाज़ किस्मत को कोस रही थी.छुट्टी का सारा मज़ा जा चुका था,पैसे बर्बाद हो रहें थें कि किलकारियों की आवाज ने तन्द्रा भंग कर दिया. खिड़की से झाँका तो देखा दोनों बच्चे और प्रसून रिसोर्ट के ही सुंदर बगीचे में खेल रहें हैं. घूमते हुए पालतू जानवर भी उनके साथ मानों ठिठोली कर रहें थें. संचालक भी बच्चों को उत्साहित करने लगे. बरसाती,मग,बाल्टी जैसे कई सामान दे उन्हें खेलने हेतु उत्साहित कर रहें थें. फ्लैट में रहने वाले महानगर संस्कृति के बच्चे हलकी फुहारों के बीच खुले हरे-भरे उस छोटी सी जगह में आनंदित हो रहें थें.
सच!समुद्र किनारे नहीं जा सकतें पर आनंद तो यहाँ भी किया जा सकता है, अचानक वह पल खास हो उठा. ख़ुशी के लिए बड़े अवसरों की ताक में कहीं ये क्षण ना खो जाएँ .
रिसोर्ट के कमरों में बंद सभी टूरिस्ट अब बारीश में भींगते वहीँ उस पल को जीने लगें, प्रज्ञा के दोनों बच्चों ने खुशियों को संक्रमित कर अब मौसम खुशनुमा बना दिया था.
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