मेरे प्यारे भैया,
तुम सुखी, स्वस्थ और दीर्घायु हो यही मेरी कामना है. मैं क्या हर बहन अपने भाई के लिए सदैव मंगल कामना ही करती है. भैया बदलें में मैंने सिर्फ तुमसे एक वचन ही चाहा है कि तुम सदैव मेरी रक्षा करोगे. हाँ तुमसे मेरा रक्त सम्बन्ध है, हम एक माँ की संतान हैं. तुम मेरी रक्षा को सदैव तत्पर रहते भी हो. इसके लिए मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती भी हूँ.
पर भैया जब मैं सड़क पर कहीं जा रहीं होती हूँ, कॉलेज से लौट रहीं होती हूँ या देर रात दफ्त्तर से निकलती हूँ तो तुम वहां हमेशा तो नहीं होते हो. वहां मुझे मिलतें हैं वो नर पिशाच जो इन्सान की खाल ओढ़े अबला स्त्रियों की अस्मिता को तार तार करने को बेताब दिखतें हैं. वह भी तो किसी के भाई होते होंगे पर दूसरों की बहनों पर कुदृष्टि डालने का कुकृत्य वे बेख़ौफ़ कर गुजरतें हैं.
भैया तुम अपनी बहन को सकुशल घर लौट आने पर सुकून की सांस ले निश्चिन्त हो जाते होगे. कई बातें रोज घटतीं हैं जिन्हें मैं हर दिन चुपचाप सह लेतीं हूँ ताकि बात का बतंगड़ ना बनें. तुम परेशां ना हो जाओ. कहीं मेरे पंख ना क़तर दियें जाएँ. कहीं घर परिवार में मैं बदनाम ना हो जाऊं, मैं चुप रह जाती हूँ. जबकि गलती मेरी नहीं होती है. आज मैं तुम्हे इस पत्र के माध्यम से बताना चाहूँगीं कि जब मैं या मेरी जैसी अन्य लडकिया या औरतें बाहर निकलतीं हैं तो किन नज़रों और स्पर्शों का सामना कर वापस लौटतीं हैं. हां, तुम्हे और अन्य सभी बहनों के भाइयों को ये अवश्य जानना चाहिए. हम बहनों का ये अब कर्तव्य हो गया कि तुम भाइयों को हकीकत के आईने से रूबरू करवाया जाये.
मध्यकालीन युग बीता होगा आप लड़कों के लिए. हमें तो आज भी विवश किया जाता है कि हम घर बैठे और चेहरा ढांक बाहर निकलें, कहीं हमारा रूप-रंग, पहनावा किसी को आकर्षित ना कर दें. पुरुष किसी भी उम्र के हों लड़कियों को देख उनकी काम-भावना जागृत हो जाना क्या नैसर्गिक है? रास्ते, दुकान, स्कूल, कॉलेज, मॉल यहाँ तक कि घर में भी लडकियां सुरक्षित नहीं हैं. मुझे तो इसके मूल में घरों में बचपन से दी जाने वाली संस्कार यूं कहें कुसंस्कार भी एक कारण समझ आता है.
क्यूंकि हमारी माएं तो बचपन से ही तुम्हे एक श्रेष्ठ भाव से पालतीं हैं, तुम हमेशा से एक गलतफहमी में रहते हो कि चूँकि तुम लड़के हो तो तुम लड़कियों से हर मामले में उच्च हो. पुत्र प्रेम की अधंत्व से ग्रसित माएं चाहें तो बचपन से ही ये संस्कार दे सकतीं हैं कि लड़की और लड़के दोनों की सम्मान का मोल तराजू पर समभाव रखती है. यदि एक लड़का बचपन से ही अपने परिवार, घर और समाज में स्त्रियों के प्रति आदर और बराबरी के व्यवहार से परिचित रहेगा तो वह कभी राह चलती औरतों पर कामुक और असम्मानीय दृष्टिपात नहीं करेगा.
भैया, जब मैं घर से निकलती हूँ तो नुक्कड़ पर खड़े मवाली सीटी बजा कुछ अभद्र टिप्पणी अवश्य करतें हैं. जब ऑटो रिक्शा पर बैठती हूँ तो कोई जबरदस्ती चिपक कर बैठने को तत्पर रहेगा. तिस पर ऑटों में तेज बजती निम्न स्तरीय गीत मानों माहौल को दूषित करने को आमादा रहेगा. कहाँ तक गिनाऊं भैया, ज्यादा सुन कहीं तुम दुखी ना हो जाओ. दिन भर जाने-अनजाने कई लिजलिजे स्पर्शों को अनदेखी कर हम अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़तें रहतें हैं. अख़बार और न्यूज़ तो देखते ही हो भैया, जिनमे कुत्सित पौरुष यौन ग्रंथि से त्रस्त दूधमुहीं बच्ची से ६० वर्षीय वृद्धा का भी जिक्र रहता है. ये कौन सी भड़काऊ कपडे पहने रहतीं हैं या देर रात बाहर घूमतीं हैं ?
भैया मैं आपको ये कथा-व्यथा इस लिए बयान कर रहीं हूँ ताकि आप दूसरों की बहनों को भी सम्मानीय दृष्टि भाव से देखें. यदि हर भाई ऐसी सोच रखेगा तो हम बहनें कितने सुकून से पल्लवित पुष्पित हो जग में सुरभित होंगे. एक चेतावनी भी देना चाहूंगी इस पत्र के माध्यम से सारे पुरुष जगत को, कि” इतना भी ना सताओ कि डर ही ख़त्म हो जाये.” जब नारी विद्रोहिणी होने लगेगी तो सामाजिक ढांचा चरमराने लगेगा और स्तिथि विस्फोटक हो जाएगी. बेचारगी का चोला अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त होने को है. दुर्गा-काली-चंडी को सिर्फ हमने पूजा नहीं है बल्कि आत्मसात भी किया है.
अत: मैं सम्पूर्ण जगत के भाइयों से यही आश्वासन और राखी बंधाई चाहूंगी कि हमें सम भाव से सम्मानीय रूप से जीने दिया जाये. अपनी कामुक और नीच कुदृष्टि को एक पोटली में बाँध कहीं गहरे मिटटी में दबा आयें, नदियों में भी विसर्जित ना करें वे पहले से ही प्रदूषित हैं. भाई मेरे राखी का इतना मोल तुम जरूर चुकाना. जगत की सम्पूर्ण खुशियाँ तुम्हारे कदम चूमें.
शुभ कामनाओं सहित
तुम्हारी बहन
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