शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

आस भरी नजरों का सफर कथादेश २




आस भरी नजरों का सफर
लघुकथा

      एक बहुत बडी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नये कर्मचरियों की भर्ती प्रक्रिया चल रही थी। मोहित के हाथ में अन्तिम प्रतिभागी की रिज्यूमे थी। सबसे हट कर होने के चलते उसे अंत में बुलाया गया था।

"क्या मैं अंदर आ सकती हूँ? ", नीलम नामक उस प्रतियोगी ने शालीनता से आज्ञा मांगी।

"आप की बायोडाटा तो बहुत ही आकर्षक है, बिल्कुल हमारी मांग मुताबिक। बस आपकी स्कूली शिक्षा की कोई जानकारी नहीं है", मोहित ने पूछा।

"दरअसल सर मैं स्कूल कभी गयी ही नहीं,  मैं ने सीधे दसवीं बोर्ड की परीक्षा को प्राइवेट दिया", नीलम ने सकुचाते हुए कहा।

मोहित व अन्य इंटरव्यू कर्त्ताओं के सवालिया निगाहों को भांपते हुए उसने खुलासा किया,

"मैं बेहद गरीब घर में जन्मी थी, मेरी माँ घरों में बरतन धोती थी और मैं अपनी बहन के साथ कूड़ा बीनती थी। छुटपन में मेरी ललक को भांप मेरी माँ के मालकिन के बच्चे हर दिन शाम को मुझे अपनी किताबों से पढाते। अपनी सुंदर पुस्तकों को छूने देते। बाद में तबादले के कारण वे लोग उस शहर से चले गएँ,  पर शिक्षा के प्रति मेरे मन जो अलख उन्होंने जलाया था उसे मैंने फिर मद्धम नहीं होने दिया। काश ! कि मैं उन्हें बता पाती कि स्वप्नों का जो बीजारोपण मेरे हमउम्र मालिकों ने किया था आज एक वृक्ष बन चुका है।
प्रश्नों के दौर चलते रहे, आखिर. ...

"मिस नीलम, आप सफल रहीं, बधाई", एक इन्टरव्यू कर्त्ता ने कहा।
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 ..और मोहित आत्म विश्वास से लबरेज नीलम को पहचान सूकून अनुभव कर रहा था।  आखिर उस आस भरी ललचाई नजरों का सफर पूरा हो चुका था जिनसे वह बचपन  में हर सुबह टकराता था स्कूल जाते वक्त।
मौलिक व् अप्रकाशित
द्वारा,
RITA GUPTA
204 B, Koylavihar Sanskriti Appartment
Near Gandhinagar Gate, Kanke Road
RANCHI, 834008, Jharkhand
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