शनिवार, 2 जुलाई 2016

दिया और तूफ़ान

दिया और तूफ़ान
( चित्र आधारित कथा)

कलयुगी घोड़े पर सवार असत्य, अहंकार और अधर्म, सम्पूर्ण जगत में विस्तारित  हो हर पक्ष को अपने सानिद्ध्य से कलंकित कर अधंकार में लील चुके थे. अचानक घोड़े की रफ़्तार मंद होने लगी, दूर कहीं सत्य, निष्ठा और धर्म का दिया टिमटिमा रहा था. दिए की लपलपाती  लौ  न थरथरा रही थी न मध्यम होती दिख रही थी. खल गयी कलयुग  को उसकी ये हेकड़ी और अहंकार में चूर अधर्म पहुँच गया न्याय की देवी के दरवाजे.
"भला कलयुग में सत्य का क्या काम?", उसने गुहार लगाया  और  दिये  को  न्याय की तराजू में बैठने को मजबूर कर  दिया.
"सम्पूर्ण सृष्टि जब आकंठ कलयुग में समायी हुई है तो फिर सतयुगी प्रतीक का क्या औचित्य, यदि न्यायधीश हैं तो पट्टी हटा मेरे अस्तित्व को चुतौती देने वाले को सजा दें  ?" अधर्मी ने अट्टहास किया.
हताश कलयुग ने देखा छोटा सा दिया पलड़े को झुका उसके अस्तित्व को हल्का करने पर उतारू है. उसने मोह पाश का  जाल बिछाया  और विवश किया कि न्याय की देवी गंधारितत्व को उतार माया ठगनी के समक्ष घुटने टेक दे.
"हे कलयुग कल तक तुम अपने चरम पर अवश्य थे परन्तु समय का पहिया घूम चुका है. सत्ययुग आने को तत्पर है, इस छोटे से दिए से शुरुआत हो चुकी   है जो तुम्हारे  तूफान से भिड़ने का सामर्थ्य रहता  है ",
     न्याय की देवी ने माया मोह के बंधन को ठुकराते हुए कहा तो कलयुग चौंक गया.  एक दिन शनै शनै उसने द्वापर को अपदस्थ  किया था, अब उसकी बारी है. सत्य  की मशाल प्रज्जवलित होने में अब देर नहीं. उसकी अश्व की रफ़्तार मध्यम होने लगी क्यूँ कि सत्य का सूर्योदय अब बस होने को थी.



7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 27 अगस्त 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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