आधुनिक युग के शिखंडी और भीष्म पितामह कौन हैं
खबर तो कई दिनों से आ ही रही थी कि दो हज़ार के नए नोट आने वालें हैं साथ ही बीस, पचास और सौ रूपयों की सिक्कों की भी बातें हो रहीं थी. whatsapp और फेसबुक पर खूब फोटो भी शेयर हो रहे थें. लोगो ने इन बातों को भी वैसे ही लिया जैसे कालांतर में जन-धन योजना को. एक-ढेड वर्ष पहले जब प्रधान मंत्री हर तरीके से चिल्ला रहें थें कि बैंक में खाता खुलवा लीजिये. तब भी लोग सिर्फ मुफ्त मलाई चाटने की ही कल्पना कर रहें थें. फिर भी बड़े पैमाने पर, चाहे किसी लालच में ही खाते खुलें. फिर आया काले धन को डिक्लेअर करने का आग्रह, बहुत लोगो ने किया भी. कुछ बड़ा सा आकडा उसका भी है. पर ऐसे कई लोग अभी भी थे जो गीदड़ भभकी समझ इसे भी हलके से ही लिया. वे वही लोग हैं जो अपनी कमाई को सरकार से छिपातें रहें हैं और नोटों के बिस्तर पर सोतें रहें हैं.
भाई नोट की गर्मी बहुत होती है. याद है पंचतंत्र की वह कहानी जिसमे एक चूहा, खूंटी पर टंगे कोट तक उछल जाता है जब तक कि उस के जेब में पैसें थें. जैसे ही किसी ने जेब से पैसे निकाल लिया चूहे की उछाल कम हो गयी.
टैक्स बचा अपनी अघोषित कमाई की मद में चूर समाज के विभिन्न पदों पर ये पदासीन खुद को भगवान समझने लगें क्यूंकि पैसे को ही ये खुदा समझतें हैं. देश तो बहुत आम सी चीज है, भाई. नियम-कानून ठेंगे पर.
अब जब इनकी काली कमाई पर सर्जिकल स्ट्राइक हो चुकी है तो अपनी सभी ज्ञानेन्द्रियों से भरसक कोसेंगें ही. आप चाहें तो भारत के नक़्शे पर चिन्हित कर सकतें हैं कि कहाँ कहां काली कमाई के चोर धन दबाये बैठें हैं. वहीँ से ज्यादा आवाजें और शोरगुल सुनाई दे रही है. एयर कंडीशन टीवी स्टूडियो में आ कर लोग ग्रामीण क्षेत्रों की तकलीफों की बातें कर रहें हैं. मैं रहतीं हूँ, देश के सबसे अनुरुनी भागों में एक छत्तीसगढ़ के वनीय क्षेत्र में. पहले दिन से आज तक, सारे काम यथावत चल रहें हैं. इस बीच बैंक भी गयी नोट भी बदलें पर इतने आराम से कि एक शब्द अविश्वसनीय लगतें हैं शिकायतों का. अरे ग्रामीण परेशान हैं अपनी गरीबी से, हमेशा की तरह न कि सरकार की नोट बंदी से. आज़ादी के इतने सालों में मोबाइल टावरों, डिश टीवी के साथ साथ पोस्ट ऑफिस और बैंकों का भी सघन जाल बना हुआ है सम्पूर्ण देश में. जनसख्याँ के आधार पर इनकी उपस्तिथि है और उनमें पैसों की उपलब्धता भी.
अब क्या आदरणीय बहन जी, खुजलीवाल, या अन्य अप्पू-पप्पू नेता सीधे सीधे ये बोले कि भाई जी आपकी नोट बंदी से ठीक वहीँ का घाव फूटा है जिसे ना दिखाया जा सकता है ना छुपाया. महाभारत युद्ध के दौरान जैसे अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में भीष्म -पितामह पर तीर चलाया था. उसी तरह ये एता – नेता काला बाजारी लोग, ग्रामीण क्षेत्र, बूढ़े लोग, बीमार लोगो और शादी के घर जैसे बहानों का शिखंडी खड़ा कर लिया है. और छोड़े जा रहें हैं आरोपों के तीर.
ये वैसे ही बहाने दे रहें हैं जैसे एक ऐड में एक एड्स पीड़ित को उसके बॉस द्वारा निकले जाने पर उसके सहकर्मी दे रहें थें अपने इस्तीफे का कारण.
पर इस बार तो बहुमत की सरकार है, हमने ही उन्हें चुना है तो उनके फैसलों और निर्णयों की जवाबदेही से हम भाग नहीं सकतें हैं. महाभारत में तो भीष्म पितामह ने धनुष रख घुटना टेक दिया था पर आज इस महाभारत में हम पितामह को धनुष नहीं त्यागने देंगें.
रीता गुप्ता , रायगढ़
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