उड़ती चिड़िया को पहचानना
पिछले साल पैर टूटने पर कोई नहीं आ सका था पर हृदयाघात की खबर पर तीनों बहुएं दौड़ी आयीं थी। आखिर इससे प्राण निकलने का भय जो होता है। आतें ही तीनों बहुओं की खोजी नज़रों को भांप अम्माजी ने एक छोटी सी संदूकची में ताला मार सिरहाने रख लिया और चाभी अपनी मुठ्ठी में। सदा अवहेलना और एकांतवास झेलने वाली अम्मा अंतिम वक़्त में बेटे -बहुओं से घिरी सेवा सत्कार कराते हुए गयीं। पर मरते दम तक चाभी वाली मुठ्ठी बच्चों से नहीं ही खुली।
पिछले साल पैर टूटने पर कोई नहीं आ सका था पर हृदयाघात की खबर पर तीनों बहुएं दौड़ी आयीं थी। आखिर इससे प्राण निकलने का भय जो होता है। आतें ही तीनों बहुओं की खोजी नज़रों को भांप अम्माजी ने एक छोटी सी संदूकची में ताला मार सिरहाने रख लिया और चाभी अपनी मुठ्ठी में। सदा अवहेलना और एकांतवास झेलने वाली अम्मा अंतिम वक़्त में बेटे -बहुओं से घिरी सेवा सत्कार कराते हुए गयीं। पर मरते दम तक चाभी वाली मुठ्ठी बच्चों से नहीं ही खुली।
" पंडित जी कोई ऐसी तरकीब बताएं कि सारे क्रिया -कर्म एकाध दिनों में निपट जाए ,बेकार ही इतने दिनों तक लगे रहें "
खाली संदूकची मुहं चिढ़ा रही थी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें