श्रवणकुमार
आज शीतल ने अचानक बताया कि वह आगे की पढाई करने अमेरिका जा रही है। "मैं क्या करूँ घर के दमघोटूं माहौल अब असहनीय हो चले हैं,तुम माँ से अलग रह नहीं सकते और मैं उनके साथ, शायद यही ठीक रहेगा "
मैं उसे जाते देख रहा था कि "मंजू -मेरा पहला प्यार - पहली बीवी" की याद आ गयी। वह भी माँ के मापदंडो पर खरी नहीं उतरी थी और नौबत तलाक रहा।
घर घुसते ही माँ को बड़बड़ाते सुना अच्छा हुआ गयी ,कहीं भली घर की बहुओं के ये ही लक्षण होतें हैं। मैं हताश माँ को देखता रह गया। कंधे पर धरी आदर्शों की बहँगी माँ की तानाशाही इच्छाओं के बोझ से अब असहनीय हो चलें हैं आखिर कबतक अपने ही टूटे -बिखरे स्वप्नों के किरिचों पर लहूलुहान तलुवों से चलना पड़ेगा।
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