सोमवार, 11 मई 2015

लघु कथा - 19 बुनियाद

बुनियाद


   अश्रुसिक्त अंतरा बोल रही थी,"आंटी मैंने सुमित को बस इतना ही कहा कि मेरी शादी तय हो गयी है " .

       माँ खोई नजरों से इन शब्दों में उस आवेग को ढूंढ रही थी जिसके वेग ने उनके वर्षो पुराने प्यार के बांध को तोड़ बेटे को बहा दिया। अंतरा और सुमित के सहपाठी भी सुमित के इस एकतरफा प्यार से अनभिज्ञ थें। माँ के हाथ में बेटे का छह पन्नों का सुसाइडल नोट था जिसमें उसने खुल कर अंतरा के प्रति अपने भावनाओं को व्यक्त किया था। 
      माँ ने सोचा, शायद मेरी परवरिश की "बुनियाद" ही कमजोर थी जो ऐसा भीरू,अंतर्मुखी और स्वार्थी चरित्र के पुत्र को मैंने पोषित किया। इससे पहले कि टीवी पर हर मिनट चटपटी और घटिया होती जा आक्षेपों का सैलाब अंतरा को बहा ले जाये उन्हें ढाल बनना ही होगा। रोने को तो अब सारी जिंदगी है ही।







(चित्र साभार- गूगल )

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