सम्पूर्ण सृष्टि प्रलय के बाद जलमग्न थी . श्री विष्णु के आदेश से ब्रह्मा जी ने सृष्टि का नव निर्माण किया .सबसे पहले उन्होंने स्थूल रचनाएँ की . उन्होंने ने अपने शरीर से कई रचनाएँ की ,लेकिन उन्हें अपनी किसी भी रचना से पूर्ण संतोष नहीं हो रहा था . फिर ब्रह्मा ने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त किया ,उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। ब्रह्मा अपनी इस रचना को देख पुलकित हो उठे और उन्हें संतान उत्पन्न करने का आदेश दिया . चूँकि पृथ्वी रसातल में थी ,मनु और शतरूपा चिंतामग्न हो उठे कि वे और उनकी संतानें कहाँ रहेंगी .भगवन विष्णु ने तब वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष को मार पृथ्वी को रसातल से निकाल लाये .प्रलयकाल में संचित सभी जीव-जंतु ,पेड़-पौधों के बीज संग मनु और शतरूपा ने पृथ्वी पर नव जीवन का शुरुआत किया . सूरज की गर्मी ,चाँद की शीतलता तथा वायु की प्राण दायनी शक्ति से सब पुष्पित -पल्लवित होने लगे . सभी के बीच समझदारी भरा सामंजस्य और संतुलन था . जीवन सुखमय बीतता गया .
समय के साथ ब्रह्मा के प्रिय मनु-शतरूपा की संतानों में अहंकार और श्रेष्ठता का भाव जाग गया और इसी के साथ धरती पर पर्यावरण का संतुलन बिगड़ना शुरू हो गया .सबकी सांझी पृथ्वी को उन्होंने अपनी बपौती समझ मनमानी शुरू कर दिया .धरती अपनी हरीतिमा खोना शुरू कर चुकी है .वह दिन दूर नहीं जब धरती फिर से रसातल में चली जाएगी . इस तरह अंधरे से शुरू हुआ सफ़र अँधेरे में समाप्त हो जायेगा .
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