मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

दंश



"सुमेधा प्लीज यार लाइट बंद कर सोने दे,रौशनी में नींद नहीं आती",
मृगया ने ऐसा कहते कमरा अँधेरा कर दिया.अभी दो  घंटे भी ना बीते होंगे कि मृगया को उसकी रूम मेट सुमेधा की तेज चीखों ने जगा दिया. मृगया ने देखा सुमेधा पसीने में भींगी चीख रही थी.
"माँ मुझे दूर न करो,माँ मैं नहीं जाउंगी ..."
मृगया ने रौशनी  कर उसे पानी पिलाया, सुमेधा अब भी हांफ रही थी. भय से मानो उसका चेहरा स्याह हुआ जा रहा था.
"यार! अब तो तुम्हे बताना होगा कि रात में तुम्हे क्या हो जाता है ?"मृगया ने पूछा.
 पीपल के पत्ते की तरह कांपती  विस्फारित नयनों से ताकती सुमेधा कैसे बताती जड़ों से उखाड़े जाने का दंश. भला उसकी क्या गलती थी जो एक रात घर के नौकर ने अँधेरे में उसका मुंह दाब उसके साथ अनाचार किया.  किसी को कानो कान खबर ना हो सो उसे अचानक ही  घर से दूर इस हॉस्टल में रख दिया गया. भरे-पूरे संयुक्त परिवार की सुमेधा सजा सरीखी उस विछोह को बर्दास्त नहीं कर पा रही थी.
"कल मैं वार्डन से कह अपना कमरा जरूर बदलूंगी,मुझे नहीं रहना तेरे संग. सोने ही नहीं देती तू ",मृगया बुदबुदा   रही थी.
दो महीने में ये पांचवीं लड़की होगी जिसने सुमेधा का रूम मेट बनना अस्वीकार किया था. निरअपराधी  सुमेधा अकेलेपन की अगली सजा हेतु फिर प्रशस्त हो चुकी थी.



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