विज्ञान की छात्रा रही और प्यार हिंदी साहित्य से करती रही। वनस्पति विज्ञान में स्नात्कोत्तर फिर शादी। पति कोल माइन्स में अभियंता हैं सो फिर जीवन कोलियरी में कटता रहा। पढाई की भूख कभी मिटी ही नहीं,ओपन यूनिवर्सिटी से कई छोटे बड़े कोर्स किये।स्वेच्छा से घर और बच्चे सम्भाले और कभी नौकरी नहीं किया। हर दोपहर गरीब बच्चो को पढ़ाना और पढाई से सम्बंधित उनकी जरूरतों को पूरा करना मेरी आत्मा को संतुष्ट करती है। अपनी दोनों बेटियों को मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ वक़्त और मार्गदर्शन दिया। बहुत छोटे और अन्दुरुनी जगहों पर रहते हुए भी मैंने विचारों और सपनों को नवीन और उच्च रखा।अपने जीवन और सपनो पर मेरा नियंत्रण नहीं था पर भगवन ने दो बेटियों के रूप में मुझे दो बार अपने सपने पूरे करने का अवसर प्रदान किया। उनके परवरिश के साथ - साथ मैं अपनी साहित्यिक अभिरूचियों को समृद्ध करती रही। ज्यादातर कलम से दिल की बात ही करती हूँ ,कभी कभी किसी पत्रिका या समाचार पत्र इत्यादि में लेख भेज देती हूँ , छप जाती है तो उत्साहवर्धन हो जाता है और कलम की गति थोड़ी तीव्र हो जाती है। राष्ट्रीय स्तर की सभी पत्रिकाओं में कमोबेश मेरी लघु व् दीर्घ कथाएं जगह पा चुकीं हैं . दो साँझा लघु कथा संग्रह," मुठ्ठी भर अक्षर " और "बूँद बूँद सागर" छप कर आ चुकी है ।
बस परिचय इतना इतिहास यही।
नाम - रीता गुप्ता
कोरबा ,छत्तीसगढ़
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