गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

लघु कथा - (1) बेबस हे राम

बेबस हे राम !

रामनवमी का जुलूस चल रहा था। सजे-धजे खुले ट्रक के ऊपर प्रभु राम अपने भक्त हनुमान के साथ विराजमान थे। आस्था की भीड़ एक दूजे पर गिरते पड़ते अपने आराध्य के दर्शनों के लिए बेकाबू हो रही थी। आयोजक बड़े धैर्य से चढ़ावे का ख्याल रख रहें थें और राम बने मनोहर को आशीर्वादी मुद्रा बनाये रखने की सीख दें रहें थें। कोई छह सात घंटो के बाद हनुमान बना बालक वहीँ धम से बैठ गया। आयोजकों का पारा गरम हो चुका था।
" ई महेशवा को आज मजूरी मिलने से रहा ,साला ! ऐन चौक पर नीचे बैठ गया,दिखिए नहीं रहा होगा नीचे से। अब हनुमान जी का चढ़ावा तो गया "
बेचारे मनोहर ने पपड़ी पड़े होठों पर जीभ फेर , रँगे- पुते चेहरे पर हंसी लाने की एक असफल कोशिश किया। दो दिनों से भूखे मनोहर को हर हाल में अपनी मजूरी लेनी थी ,घर पर बीमार माँ आसरे में होगी।
तभी किसी श्रद्धालु ने जोर से हूँकार लगाई, "हे राम ! कृपा करो।"
ऐंठती अंतड़ियों ने दम लगा आवाज लगाई, " कल्याण भव"






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