गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

लघु कथा -(4 ) शर्म

शर्म

रामाशीष का बेटा पढ़ लिख बड़ा अफसर बन गया था। दो दिन पहले ही खबर भिजवाया कि उसकी पोस्टिंग इसी शहर में हो गयी है और फलां ट्रेन से आ रहा है। ट्रेन आई, ए सी फर्स्ट डिब्बे के पास बड़ी हलचल सी लगी ,झटकते हुए वहां पहुंचा तो  देखा बेटे को फूल -मालाओं से स्वागत करने वालों की हुजूम लगी है। किसी तरह भीड़ चीरते हुए बेटा तक पहुंचा भी, बेटा ने उचटती निगाहों से उसे देखा और भीड़ की जयकार के साथ आगे बढ़ गया। रामाशीष थरथरा कर वहीँ एक कुली के ट्राली पर बैठ गया और उसे याद हो आया जब वह बेटे के स्कूल जाता था तो वह तोतली जुबान से बोला करता था कि आप धोती पहन ना आया करो।




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