गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

लघु कथा -(5).......और कारवां गुजर गया

और कारवां गुजर गया


     सुनहलें सपनों की नसैनी पर मैंने अभी पहला पग धरा ही था कि वह पायदान कमजोर निकली। पिता जी की असमय मौत ने दूसरी कदम उठाने से पहले ही जिम्मेदारियों की जंजीरों से जकड दिया, या तो मैं सीढ़ी पर चढ़ ऊपर निकल जाता या खुद सीढ़ी बन खड़ा रह जाता ,मैंने दूसरा मार्ग ही अपनाया और भाई -बहनों को ऊपर बढ़ाता गया। कालांतर में मेरी पत्नी,दोस्त और रिश्तेदारों  ने भी मुझे महज पैड़ी ही समझा। सब ऊपर चढ़ जाते और सीढ़ी छोटी हो जाती। एक मुठ्ठी  से सीढ़ी और दूजी में  अपने सपनों को लिए मैं वहीँ खड़ा रह गया। एक बार फिर  अगली पीढ़ी के लिए सीढ़ी बन सतर हूँ। शायद खड़ी सीढ़ी की चढाई अब ना कर पाऊं। मुठ्ठी में कैद फड़फड़ातीं तितलियाँ अब मेरे साथ लेटी हुई सीढ़ी पर ही आगे का रास्ता तय करेंगी। 







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