बुधवार, 27 मई 2015

लघु कथा २५ - अलमस्त

अलमस्त 

'अरी बिटिया कब समझेगी तू, आज लाला फिर तुम्हारी शिकायत कर रहा था, ये मकान मालिक के लड़के को पत्थर क्यों मारा और वो शामू चाचा के बारे चाची से क्याा बोला तुमने जो वो आग उगलने लगी। तेरे बापू के मरने के बाद लाला, शामू चाचा और मकान मालिक ने कितना सहारा दिया है हमें । और एक तू है जो इन सब से झगड़ती फिरती है । तेरी इन्ही हरकतों की वजह से लोग तुझे बबिता नहीं बिजली बोलते हैं, ,सींग निकाले घूमती रहती हो ।' 
सुबह से मजदूरी पर गई मां शाम को घर आते ही बिजली पर भड़की 
' अब अम्मा को क्या पता कि बिना बाप की गरीब की बेटी अगर बिजली बन ना घूमे तो ये दरिंदे घास समझ रौंद कर नेस्तनाबूत ही न कर दें।' 
वो अपने कंधे पर सिर रखकर सोने का प्रयास करते हुए भाई के कान में धीरे से बड़बडाई .

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