मंगलवार, 26 मई 2015

लघु कथा -24 बूँद जो बन गयी मोती

बूँद जो बन गयी मोती

"मैं अभी पढूंगी ,भैया मुझसे बड़े हैं उनकी पढाई क्यों नहीं छुड़वा रहें ? "
"हूँ ! कौन सा लाट-कलेक्टर बन जाना है , कमाने वाला लड़का है यदि हाँ कहेंगे तो बस कर देनी है शादी ,कुछ तो बोझ कम हो मेरी " अम्मा ने कहा और शायद बाबूजी की भी यही मंशा थी।
उनकी जोर जबरदस्ती के आगे सीमा की एक ना चली ,उसी रोनी सूरत में बिसूरती हुई सीमा को लड़के वालों ने देखा और ना बोल चलें गएँ। माँ-बाबू के माथे की लकीरे और गहरा गयीं।
"मैं सीमा को अपने साथ दिल्ली ले जाता हूँ ,रहेगी तो मदद होगी मेरी " भैया ने ऐलान किया।
चार साल गुजर गएँ ,स्थिति बदली परिस्थिति बदली और बदली मानसिकता।
घर -परिवार की किसी भी लड़की को अब असमय शादी करने विवश नहीं किया जाता है क्यूंकि सीमा सही में कलेक्टर बन गयी थी।

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