"अरे मेरा राजा बेटा आ गए तुम , कैसे हो ? ये कैसा शर्ट पहना है ? तुम्हारी माँ की पसंद हमेशा से बहुत बुरी रही है . "
सनी को देखते ही राजेश बोल पड़ा .
"नहीं ,पापा इसे तो मैंने ही पसंद किया था ".
"तुम्हारी माँ को खुद कपडे पहनने का शऊर नहीं है ,तुम्हे क्या पहनाएगी . चलो मैं तुम्हे नए खरीद देता हूँ ", राजेश ने कहा .
"नहीं चाहिए मुझे .........",हर बार की तरह माँ की शिकायते सुन सनी दुखी हो उठा .
"पापा , माँ आपकी पसंद की बहुत बड़ाई करती हैं ",माँ के इमेज को ठीक करने की कोशिश में उसने आगे कहा ,जाहिर था झूठ कहा .
........
"दो दिनों में ही मेरे बेटे को कमजोर कर दिया ,लगता है कुछ खिलाया ही नहीं .चेहरा कैसा सूखा लग रहा , लापरवाह आदमी उससे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ", सुधा ने उसे देखते ही कहा .
"नहीं माँ,पापा ने तो बहुत खिलाया ,बड़े बड़े होटलों में मुझे नई नई डिश खिलाई . पर बोल रहें थे कि तुम्हारी मम्मी जैसा खाना कोई नहीं पकाता ", होंठ काटते हुए सनी ने फिर एक झूठ कहा .
तलाकशुदा माँ -बाप के दरम्यान झूले सा झूलता सनी का बचपन, सामंजस्य बैठाने की एक हारी हुई कोशिश हर बार करता .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें