नयी सोच
सुधा तीन सालों के बाद अपने मायके आई हुई थी .घर-गृहस्थी की चक्की में पिसती सुधा को मायके आ कर ऐसा महसूस हो रहा था मानों किसी चक्रव्यूह से बाहर निकली हो .कम उम्र में ही दो बच्चों की माँ बन जाने और तमाम जिम्मेदारियों तलें उसके सारे सपनें रसोईघर में पक कर ख़ाक हो चुके थें .अरमानों के डैनें पसरने के पहले सुसुप्त अवस्था में दम तोड़ चुके थें .अपनी दो वर्ष अनुजा को पढ़ते -लिखते देख उसे एक सूकून महसूस हो रहा था,पर कहीं कुछ टूट भी रहा था .
"माँ ,अब पल्लवी की भी शादी कर दों ,मेरे तो दोनों बच्चे हो गएँ थे इसकी उम्र में ",बुजुर्गियत जताती हुई सुधा ने कहा .
"अरे अभी उसकी पढाई चल रही है ,पूरी होने से करेंगे शादी .अब जमाना बदल गया है ",माँ ने समझाते हुए कहा .
माँ की इस नयी सोच को देख सुधा दंग रह गयी ,काश कि ये सोच ......
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