शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

नि:शस्त्र देवियाँ

 नि:शस्त्र देवियाँ

बीच  सड़क  पर  उस  बच्ची  की  अधनंगी मृतप्राय शरीर ,पूरे समाज को शर्मसार कर रही थी .जिन्होंने कुकृत्य कर उसे बेहाल-बदहाल किया था उन्होंने तो सिर्फ उसे एक मादा एक भोग्या समझा . उस सर्द रात्रि में उस शरीर की स्वामिनी ,उसकी आत्मा चीत्कार  कर रही थी . जब जन्म हुआ था तो ,लोगो ने कहा,
"बधाई हो लक्ष्मी आई है "
जब सुमधुर गीत गाया  या अच्छे अंक लायी ,तो कहा,
"वाह साक्षात् सरस्वती है "
जब नवरात्र आया ,तो पैर धोते -चुनर ओढ़ाते कहा ,
"ये दुर्गा का अवतार है "
क्षत-विक्षत तन से असंख्य प्रश्न उठ रहें हैं ,
"हे पालक , ऐ समाज- देश , सुनो वक़्त ,तुमने सिर्फ नाम दिया देवियों के उनकी  ताकत को क्यूँ नहीं दिया ? क्यूँ सारे अस्त्र-शस्त्र छीन नि:शस्त्र कर महिषासुरों के समक्ष जीने को मजबूर किया ? भाव-भंगिमाओं और हस्त मुद्राओं से देवी रूप तो गढ़ दिया पर भाला,त्रिशूल ,पाश और तलवार दे दिया निशुम्भ-शुम्भ और चंड और मुंडों को ?"
स्त्री तन धारी हर मानवी की आत्मा पुकार रही है ,
"समाज सावधान ! तुम्हारी  असंतुलित वेदी पर कितनी ही निर्भायों और दामिनियों  की बलि हो चुकी है .उनसभी की अतृप्त आत्माएं जागृत हो रहीं हैं,एक खप्पर धारिणी काली का अवतरण अब दूर नहीं .







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