मंगलवार, 19 जनवरी 2016

अछूत-कन्या

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अछूत-कन्या

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी सुम्मी अपने पापा-मम्मी के साथ सावन में होने वाली कुलदेवता की विशेष पूजा हेतु दादी के घर गयी थी .हर साल  काफी उत्साह से वह पूजा-पाठ के संस्कारों में भाग लेती थी . कुछ महीने  पहले ही अपना तेरहवां जन्मदिन  मनाने वाली सुम्मी  समझ ही नहीं पा रही थी कि दादी क्यूँ उससे अछूतों वाला व्यवहार कर रही है . गुमसुम सी सुम्मी मंदिर के बाहर खड़ी ,सोच रही थी कि वह तो सबसे पहले उठ कर नहा चुकी थी फिर क्यूँ उसे दादी ने पूजा की थाली उठाने से रोक दिया . भैया को तो दादी ने स्वयं प्रसाद का थाल पकड़ा दिया . घर पर तो माँ कुछ नहीं बोलतीं थी पर दादी के सामने माँ संकेतों में उसे क्या समझा रही थी . उसने ऐसा क्या अपराध किया जो उसके मंदिर में प्रवेश पर भी रोक लगा  दी गयी है .
  भोली सुम्मी को सामाजिक विज्ञान में पढाई गयी वर्ण-व्यवस्था याद आ रही थी . वह चकित थी कि वह अचानक समाज की सबसे निचली पायदान  पर कैसे पहुँच गयी .




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