प्राथमिकताएँ
कई महीनों से बेटे से
ठीक से बात नहीं हो पा रही थी,बहुत व्यस्त चल रहा था। दुसरे शहर में रहने वाले पिताजी से
मिलना तो दूर बात करने की भी फुरसत नहीं हो रही थी। एक दिन अलसुबह बेटे को फोन
किया ताकि उसकी आवाज तो सुन सकें।
"सॉरी पापा समय ही नहीं मिल
रहा कि आपसे मिल सकूँ या बात करूँ ".
"आखिर हुआ क्या ?" शर्माजी
ने घबराते हुए पुछा।
"अरे !मंजू की माँ आयीं हुई
है ,शाम को
दफ्तर के बाद कहीं ना कहीं घूमने चले जातें हैं ,उसके पहले मंजू की चाची
आयीं हुई थी डॉक्टर को दिखाने हर दिन डॉक्टर के पास दौड़ते परेशान रहा। अगले हफ्ते
मंजू की मौसेरी बहन की शादी है। मुझे ही सारा इन्तेजाम करना पड़ रहा है। मंजू
के पापा को हर दिन ताज़ी सब्जी खाने की आदत है ,सो अभी सब्जी बाजार आया हुआ
हूँ। "
"बस बेटा ,मैं समझ
गया कि वाकई तुम बहुत व्यस्त हो। तुम्हारे पास समय नहीं है " शर्माजी ने फोन
रखते हुए धीरे से कहा ,"मेरे लिए" .
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