स्निग्धा कई वर्षों से ऑस्ट्रेलिया में अपने पति संग रह रही थी. अब तो वहां की नागरिकता भी मिल गयी थी. सिडनी क्रिकेट मैदान में भारत और ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट मैच चल रहा था. उसके दोनों बच्चें ऑस्ट्रेलिया की टीम को चियर्स कर रहें थें . भारत की स्थिती अच्छी नहीं थी, मैदान ऑस्ट्रेलिया के झंडों से अटा पड़ा था . उसके बगल की कुर्सी पर कोई भारतीय ही बैठा था जो हारती सेना को देख उठ कर चला गया था और एक भारतीय झंडा मोड़ कर छोड़ गया था. उस शोर के बीच अचानक मानों स्निग्धा अकेली हो गयी , तिरंगे को देख बहुत कुछ याद आने लगा . अचानक याद आ गया पड़ोस का सम्राट भैया जो सीमा पर शहीद हो गया था, उसे तिरंगे में लपेट कर ही लाया गया था . वह मंजर याद आ गया जब उनकी सेना की बटालियन ने उन्हें सलामी दिया था. नम हो गयी आँखें, बह निकली अश्रु धार. दिल में बसा देश-प्रेम हिलोरें लेने लगा. आखिरी ओवर था शायद, स्निग्धा ने तिरंगा उठाया और कुर्सी पर चढ़
" इंडिया-इंडिया " का शोर मचाने लगी .
तभी धोनी के छक्के ने मैच का रुख ही बदल दिया . भारत अब जीत की ओर अग्रसर था और मैदान में लगे बड़े स्क्रीन पर स्निग्धा अकेली तिरंगा हिलाती दिख रही थी .
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