तमाशबीन
एक घंटे पहले ही उसे पता
चला कि पिताजी की तबियत अचानक बहुत ख़राब हो गयी है. संयोग से तुरंत ही ट्रेन थी सो
भागा-भागा रेलवे स्टेशन आ गया और जनरल बोगी का एक टिकट किसी तरह कटा ट्रेन में चढ़
गया. बोगी में घुसते उसने एक सूकून भरी सांस लिया कि अब वह कम से कम पिताजी के पास
पहुँच जायेगा. बोगी पहले से ही खचाखच भरी हुई थी. हमेशा एसी कोच से सफ़र करने वाले
को आज मजबूरी में यूं भेड-बकरियों के जैसे ठुंसे जाना पड़ रहा था. उसने चारों तरफ का
मुआयना किया. ऊपर नीचे साइड के सभी बर्थपर लोग एक दुसरे पर मानों चढ़े बैठे हुए थे.
कोई आधा घंटा एक पैर पर खड़े रहने के बाद उसने बर्थ पर बैठे एक लड़के को चाशनी घुले
शब्दों में कहा,
“बेटा मैं अर्थराइटिस का
मरीज़ हूँ क्या मुझे थोड़ी देर बैठने दोगे ?”
उसने दो-तीन बार दुहराया पर
उसने मानों सुना ही नहीं. फिर उसने सामने बर्थ पर बैठे व्यक्ति को भी कहा, साइड
वाले चारों लड़कों को भी कहा. सर उठा उसने आस भरी निगाहों से ऊपर बर्थ पर पसरे
भाईसाहब को भी देखा, जो नज़र मिलते ही मानों नींद में झूलने लगे. उस से सटे खड़े
व्यक्ति की दुर्गन्ध बर्दास्त की सीमा पर कर चुकी थी. टाँगे सच में अब दुखने लगी थी.
भीड़ में फंसा खुद को कितना बेबस और लाचार महसूस कर रहा था कि तभी शायद कोई स्टेशन
आया. ऊपर बर्थ वाले भाई साहब की तन्द्रा टूटी और वो उचक कर नीचे कूद पड़े. इससे
पहले कि कोई कुछ सोचता वह ऊपर विराजमान हो चुका था. थोड़ा टाँगे फैला उसने अंगडाई
लिया कि देखा भीड़ का चेहरा तब तक बदल चुका है और कुछ देर पहले तक जहाँ वह खड़ा था
वहां एक गर्भवती महिला खड़ी उन्ही नज़रों से मुआयना कर रही है जिन नज़रों से वह कुछ
पल पहले कर रहा था. इस से पहले की उस महिला की आस भरी निगाहों का सफ़र उस तक पहुंचे
उसने अपनी आखें बंद कर ली.
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