गुरुवार, 5 मई 2016

जीवन के रंग

जीवन के रंग
दो बहनें,एक कोखजायीं वर्षों बाद मिलना हुआ. छोटी बहन की चकाचौंध देख बड़ी बहन की आँखें चुन्धियाँ गयीं. उसके ठाठ-बाठ और रंगीन जीवन को देख उसे ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य हो रहा था. छोटी भी अपनी वैभव प्रदर्शनी में कोई कमी नहीं ही छोड़ रही थी, उसे महसूस हो रहा था कि सारे तीर निशाने पर लग रहें हैं. श्वेत-श्याम सी दीदी की जिंदगानी को फीकी करने हेतु वह अपने समृध ऐश्वर्यपूर्ण रहन-सहन के सारे पत्ते बिखेर चुकी थी. सुखों की पहाड़ पर बैठी वह अपनी बहन की निम्न स्तरीय जीवन शैली को मानों मुहं चिढा रही थी कि उसका पति जो कहीं बाहर गया था वापस आ गया. बड़ी साली उपस्तिथि से अनजान उसने अपनी पत्नी को आवाज दिया,
"देखो तुम्हे मंत्री जी के साथ कुछ दिनों के लिए सिंगापूर जाना होगा. इस बार उन्हें खुश कर लिया तो दिल्ली में फ्लैट पक्का"
अचानक पहाड़ी ढह गयी,उस टीले से लुढ़कते हुए छोटी के सारे रंग अचानक गडमड हो गए. श्वेत-श्यामल बड़ी ने देखा कि सारे रंग मिल कर काले हो गएँ हैं. उस काली बदबूदार आबो हवा में क्षण भर पहले चमकती बहन रंगहीन हो निस्तेज  धराशाही औंधे गिरी हुई है.

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