मातृ भाव धर्म
(चित्र आधारित)
धरती का वह एक कोना, जिससे
हर शै रूठ गयी थी. बादल, वर्षा, छावं , नमी मानों इधर का रास्ता भूल चुके थे.
लगातार चौथे बरस अनाकाल झेल रहा वह अभागा भूभाग अब बस अपनी अस्तित्व की आखरी लड़ाई
लड़ रहा था. गाँव के अधिकाँश पुरुष आकाल ग्रस्त ग्राम को छोड़ रोजी-रोटी की तलाश में
दूर कहीं भटकने को मजबूर थें. भयंकर दुर्भिक्ष झेल रहे उस ग्राम में शेष थीं तो औरतें,
बच्चे, बूढ़े, विकलांग या फिर रोगी. पशु-पक्षी तक अपना चोला बदल स्थान त्याग चुके
थे. सद्यःप्रसवा कमली निढाल पड़ी गोद के बच्चे को सूखे तन से लगा शायद दुग्धपान का
छलावा दे जीवित रखने अंतिम प्रयास कर रही थी. गर्भावस्था के अंतिम चरण में उसका
पति भी पानी- वर्षा, हरियाली- खुशहाली की तरह उसके जीवन और गाँव से चम्पत हो चुका
था. पर वह तो एक माँ है, वह रक्त की अंतिम बूँद से भी अपने लाल को जीवित रखने का
प्रयास करेगी. जैसे धरती माँ इस बुभुक्षित ग्राम के अभागों- अनाथों की रक्षा उस कुएँ
के रूप में कर रही है. जिस प्रकार उसका
शिशु उसके तन से जीवन रस ग्रहण करने हेतु चिपटा हुआ है उसी प्रकार क्षुधातुर
नर-नारी कुँए की जगत से सट जीवन रस जल का दोहन कर प्राण रक्षा कर रहें हैं. प्रकृति
का हर भाव अपना स्वरुप समयनुसार बदल सकता है सिवाय मातृ भाव के और शायद इसी भाव पर
सृष्टि टिकी हुई है.
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