औपचारिकता
विषय- दिखावटी श्रद्धा
“आदरणीय रामाशीष जी आपकी
कमी मुझे व्यक्तिगत रूप से खलेगी”, पूर्व बॉस श्रीकांत जी कहां.
“रामाशीष जी ने हमेशा मुझे
एक छोटे भाई की तरह समझा है”, सहकर्मी रमेश ने कहा.
“हम सदा आपके दिखाए मार्ग
पर ही चलेंगे”, जब दूसरे सहकर्मी श्यामनंदन ने ये कहा तो रामाशीष जी ने विद्रूप
दृष्टि से उसे देखा.
“आप के जाने से विभाग को जो
क्षति होगी उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी”, वित्त विभाग के अफसर ने कहा.
यहाँ के कार्यकाल के अंतिम
दिन, रामाशीष जी मंच पर फूल मालाओं से लदे अपने विदाई समारोह में बिखेरे जाने वाले
इन दिखावटी श्रद्धा सुमन को बस वैसे ही ग्रहण कर रहें थें जैसे कमल के पत्ते पर
पानी की बूँद. अपने पांच वर्षीय कार्यकाल में उन्होंने इस चौकड़ी की एक भी फर्जी
कारनामों को सफल नहीं होने दिया था. उनके मन में फूट रहें लड्डुओं का उन्हें खूब
अंदाजा हो रहा था. आशीर्वचनों के साथ रामाशीष जी ने वहां से औपचारिक विदाई लिया और गले में पड़े फूलों के हार के साथ
उनके रंग सुगंध विहीन श्रद्धा सुमन को छोड़, अपनी अगली पोस्टिंग की ओर चल पड़ें जहाँ
की अफसरों की कारगुजारियों से हाल ही में प्रदेश हिल चुका था.
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