गर्मी थी उमस थी बेचैनी थी ,पिया गए परदेस ,हर
पत्ते को,हर शै को हर फूल को खबर थी .पिया मिलन की आस,बढ़ा कर प्यास विरहणी जलती थी
.पत्ते सूखे ,हवा हुई रूखी ,फूल झड़े .कागा तड़पा,कोयल चुप और मोर डरी.पिया ऐसे गये परदेस कि सब गुमसुम हो गए .ग्रीष्म की चादर
ओढ़ प्रकृति विरहन भई .
रात ऐसी भई बरसात ,गजब की बात कि सब हैरान हुए
. ना बादल गरजा ना चमकी बिजली फिर कब ये बरसात हुई .पत्ते गीले मिटटी भींगी ,हवा
भी है नमी नमी ,जाने कल क्या बात हुई कि कोयल की भी प्यास बुझी .
रात विरहणी ऐसा रोई ,कैसा रोई भई ऐसा रोई ,बह
गया काजल ,जी भींगा तकिया .ऐसा भींगा ऐसा भींगा ,सारा आलम भींग गया जी .ग्रीष्म की
चादर जी भर भींगी , बहता काजल बदरी बन पिया को ऐसा डराया कि तड़पत लपकत घर वापस भागे ,सुबह सवेरे सावन आया... ..
फिर ऐसी हुई बरसात
गजब की बात कि मोरनी झूम गयी,कोयल कूक उठी .
( चित्र साभार - गूगल )
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