कहीं दूर जब दिन ढल
जाए
(चित्र कथा )
आसन्न मृत्यु के समक्ष आनन्द अब भी डटा खड़ा
था ,जिन्दगी के पल्लू को पकड़ .दोस्तों के सामने भले हँसता-गाता पर जब आंसू नयनों
को अतिक्रमण करने आतुर हो उठते तो समुन्द्र किनारे आ खड़ा हो जाता. रेत पर अपने
पैरों को देख सोचता ,ये तन यहीं रह जायेगा पर वह कहाँ जायेगा गहरे समुद्र तले ,ऊपर
दूर गगन में या सुदूर क्षितिज में .सामने दूर तक फैला नील सिन्धु और ऊपर नीला अनंत
आसमान . रंगबिरंगे गुब्बारों से मानों नीले रंग की एकरसता को तोड़ता आनन्द देर तक
समुद्र के खारेपन को बढाता.जब रात का स्याह आँचल हर नील को काली करने आतुर हो जाता
तो थोड़ी सी आत्मा गुब्बारों के संग आज़ाद
कर दोस्तों के लिए हंसी-ख़ुशी के नए रंग ले वापस लौट आता .
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