सोमवार, 23 मई 2016

भस्म होतें अरमान

 भस्म होतें अरमान
( तापमान विषय आधारित )
अक्षिता पसीने से तरबतर घर लौटी. अम्मा ने तुरंत बर्फ डली शरबत का गिलास पकड़ाया. गला तर करना अभी शुरू ही किया था कि उसका बड़ा भाई अक्षित हांफता हुआ कमरे में प्रवेश किया.
“आ गया तू भी रूक मैं तुम्हारे लिए भी शरबत लाती हूँ”, कहते अम्मा उठने लगीं.
“पहले पूछ दफ्तर के बाद ये किसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी? मेरे दोस्त ने खुद अपनी आँखों से कैफ़ेटेरिया में इसे देखा है. उसके साथ सेल्फी ली जा रही थी. जानती हो अम्मा वह लड़का उस मोहल्ले का है.” अक्षित की आँखे मानों अंगारे उगल रही थी.
अभी तक चुपचाप से पेपर पढ़ते बाउजी में भी मानों करंट दौड़ गया, अम्मा की हाथ से शरबत का गिलास छूट गिर पड़ा. कमरे का तापमान अचानक अपनी चरम पर पहुँच गया.”उस मोहल्ले” ने अचानक सनसनी फैला दी. एक पल को लगा कमरें में सबके सर फट जायेंगे कि अम्मा बोल पड़ी,
“ बड़ा आया दोस्त की बातों में आने वाला, मुझे तो अक्षिता ने आते ही बताया था कि वह अपने नए बॉस के साथ कैफ़ेटेरिया गयी थी. साथ में इसकी और सहेलियां भी थी, यही बताया था ना ?” बोलती हुई अम्मा अक्षिता की तरफ सवालिया निगाहों से घूमी.
“जी जी ....” हक़लाती अक्षिता ने सर हिलाया. अचानक कमरे का तापमान सामान्य हो गया, पंचायत के दोनों सदस्य अपनी खाप वाली भूमिका से भाई और बाप की भूमिका में आ गए.
परन्तु अम्मा के माथे के बल और गहरा गएँ और इसे सिर्फ अक्षिता ने देखा. आज तो काठ की हांड़ी में खिचड़ी गल गयी थी पर यक्ष-प्रश्न था आगे क्या उसे भी बुआ की तरह इनकी लहकती क्रोधाग्नि में भस्म होना होगा. गले के पीछे से अचानक पसीने  की एक धार  बह निकली और  रीढ़ में सनसनी सी कर दिया .
“आज रात कोई निर्णय ले ही लेना होगा”,  सोचती हुई अक्षिता ने एसी चला दिया.



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