एहसास
लगभग पंद्रह वर्ष पहले की बात है, हम सपरिवार केदारनाथ की यात्रा पर गएँ थे. सनद रहें तब तक वो विध्वंशकारी प्राकृतिक आपदा नहीं आई थी परन्तु यात्री-सुविधाओं की बेहद दयनीय स्तिथि थी. तीर्थ यात्रियों की भीड़ के समक्ष उपलब्ध सुविधाएँ और सुरक्षा ऊंट के मुहं में जीरा सम थी. गौरी कुंड तक तो हम कार में गएँ, वहां से आगे की १४ km चढाई घोड़े से करनी थी. बहुत लोग छड़ी के सहारे पैदल भी जा रहें थे. राम-बाड़ा में रुकते हुए हम आराम से मंदिर तक पहुँच गएँ. पर जैसे ही लौटने को हुए कि मानों बादल फट पड़ा, वैसी भयावह बारीश बस पहाड़ों पर ही होतीं हैं. पतली सी कच्ची पगडण्डी , एक तरफ ऊंचे पहाड़ और दूसरी तरफ गहरी खाई. घोड़ों के खुर फिसलने लगें. तभी एक तीर्थ यात्री घोडा समेत खाई में जा गिरा. भयावह हो गया अचानक सारा वातावरण, हम सब स्थानीय घोड़े वालों की सलाह पर घोड़े को छोड़ पैदल ही उतरने की चेष्टा करने लगें. परन्तु यहाँ भी एक दिक्कत थी, छड़ी के अभाव में हम कदम रख ही नहीं पा रहें थे बरसात से फिसलन भरी कच्ची पगडण्डी पर लग रहा था कि हमारें जूते अब फिसले कि तब. अँधेरा होने लगा था और उतरने वाले यात्रियों संख्या भी कम होती जा रही थी. ऐसा लग रहा था मानो उस दिन हम वहीँ फंसे रह जायेंगे या फिसल कर खाई में. भयाक्रांत हो बेबसी से मैं चिल्ला पड़ी,
"हे ईश्वर मदद करों, बिना छड़ी के हम कैसें उतरें ?"
तभी अचानक पीछे से एक घुड़सवार बेहद तेजी से गुजरा , जानें उस तक मेरी आवाज पहुंची थी जो वह चार छड़ियाँ फेंकते हुए, उसी तेजी से बारीश की धुंध में आगे गुम हो गया. उन छड़ियों के सहारें हम चारों अपनी १४ km की उतराई को पूरी किया. रास्ते भर हम बात करते रहें जब अन्य घोड़ों के खुर फिसल रहें हैं तो वह इतनी तेजी से कैसे जा रहा था . घोड़े पर जाता हुआ वह व्यक्ति क्यूँ कर चार छड़ियाँ लिए हुए था. वह घुड़सवार हमारे लिए ईश्वर सदृश्य था या उसका भेजा दूत . सच उस दिन मुझे ईश्वर के होने का साक्षात् एहसास हुआ.
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