शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

सौदा

सौदा
(चित्र आधारित)
संकल्प हतप्रभ सा देखता रह गया था उस अप्रत्याशित अनहोनी को. अभी बस एक महीने पहले ही पहली बार उसने रौशनी को देखा था. अपनी माँ के बगल में बैठी लगातार मुस्कुराती रौशनी ने उसके दिल को चुरा लिया था. फिर चटपट मंगनी और शादी. कभी अकेले मिलने मौका ही नहीं लगा उसे, बस घायल होता रहा, उसकी मासूम मुस्कान पर. संकल्प और  उसके माता-पिता भरपूर दहेज़ के साथ इस छम छम आती लक्ष्मी के लिए भी  बेकरार हो गएँ थें. बाकी सारी बातें गौण हो गयी थी. पूरे रस्मों -रिवाजों के बीच एक पल भी अकेलापन नहीं मिला कि संकल्प अपनी दुल्हन से दो बातें कर सकें. प्रथम मिलन पर रौशनी की असहजता और असहयोग को उसने उसकी मासूमियत ही समझा  था. सुबह किसी के दरवाजा पीटने से उसकी नींद खुली थी, सामने पुलिस को देख संकल्प भौचक रह गया. तब जा कर उसे पता चला कि रात्रि के जाने किस पहर में रौशनी कमरे की बालकनी से छलांग लगा अपनी इहलीला समाप्त कर चुकी थी. कुछ घंटें पहलें जिन मेंहदी लगी हाथों को वह पाणीग्रहण कर लाया था वह हमेशा के लिए उसकी जिन्दगी में ग्रहण लगा चल बसी थी. जेल की काल कोठरी में अपने परिवार सहित संकल्प सर झुकाए सर पर मंडराती मौत को महसूस कर हतप्रभ था. पिछले दिनों तेजी से घटी घटनाक्रम उन अतिसाधारण हैसियत वाले लोगो की मानस पर दौड़ लगा रहें थें.
तभी पता चला कि उन्हें रिहा किया जा रहा है, सामने रौशनी के माता-पिता को देख संकल्प ठिठक गया. उनका गुनाहगार था वह और उन्होंने ही रिहा करवाया .
“हमें माफ़ कर दो बेटा हमनें अपनी बेटी की अर्धविछिप्त अवस्था को तुमसे छुपाया. हमनें हीरे-जवाहरात और सोनें- चांदी के बदलें अपनी बेटी के लिए किस्मत खरीदने का असफल प्रयास किया. शायद बेऔलाद रहना ही हमारी नियती है.” रौशनी की माँ ने  फूट फूट कर रोते हुए कहा.

“बेटी चली गयी तो क्या, दामाद भी बेटा ही होता है”, संकल्प ने झट बहती गंगा में हाथ धोते हुए जाती हुई लक्ष्मी को लपक लिया. 


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