सोमवार, 20 जून 2016

जीवन है जीने के लिए-

जीवन है जीने के लिए- आत्महत्या कायरता है

“जिन्दगी” एक  उपहार है जिसे माता-पिता अपने बच्चों को देतें हैं. अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण  क्षण -दिन-महीने -साल लोग अपने बच्चों के जीवन सवारने में लगा देतें हैं. ख़ास कर हमारी भारतीय मानसिकता तो यही है. युवा होते होते “It’s my life वाली भावना प्रबल होने लगती है. जीवन भलें अपनी इच्छा अनुसार जियें पर सर्वाधिकार तो माँ-बाप के पास ही सुरक्षित रहता है. उसे समाप्त करने का तो हक ही नहीं है किसी के पास. बहुत ही ज्यादा क्षोभ होता है जब कोई इसे समाप्त करता है असमय. आत्महत्या शायद एक क्षणिक मनोवृत्ति या आवेश होती है, वह क्षण किसी तरह टल जाये तो जीवन जीने हेतु बच जाता है. हर दुःख, अपमान,असफलता,बिछोह, बेवफाई वक़्त के साथ गुजर जाता है. दरसल इस दुनिया में मृत्यु को छोड़ कुछ भी शाश्वत नहीं है. फिर बॉयफ्रेंड – गर्लफ्रेंड या परीक्षा फल  के लिए माता-पिता के अमूल्य निधि को नष्ट करना मूर्खता है. बहुत सारे लोग होंगे जिन्हें कभी न कभी आत्महत्या का ख्याल आया होगा, परन्तु आज अपनी वो सोच कितनी बचकानी महसूस होती होगी उन्हें. 

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