सोमवार, 18 मई 2015

लघु कथा -22 हवस

हवस 
  बचपन से ही एक जूनून सा था कि सबसे आगे निकलूँ। गॉंव की गलियों में यारों  संग दौड़ने ,कूदने ,टायर घुमाने से ले कर पढाई लिखाई ,हर क्षेत्र में मैं प्रथम रहूं यही मेरी कोशिश रहती। दौड़ते दौड़ते आगे भागते रहा , पहलें बचपन के यार दोस्त छूटे फिर धीरे धीरे माँ-बाप ,रिश्तेदार। आगे बढ़ने की होड़ ने मुझे तनहा कर दिया। हर वक़्त मुझे कुछ लोग खुद से आगे मिलते और मैं उन्हें पछाड़ने में लग जाता। इस  ऊंचाई पर पहुँच खुद को कितना तनहा महसूस कर रहा हूँ।
   जी चाहता है लौट चलूँ फिर उन गलियों में ,यारों संग टायर ले दौडूँ। पर पहली जीत तो अपने ही एक मित्र को धक्का दे मैंने पाई थी। मुड़ कर भी नहीं देखा था। जाने कितनो को गिरा कर आज तथाकथित इस ऊंचाई को मैंने जीता है। शायद वापसी संभव नहीं   ............



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