बुधवार, 25 नवंबर 2015

मुझे जीने दो

मुझे जीने दो- शीर्षक अंतर्गत

जिजीविषा 

        विजय  बेटी के पास दो महीने विदेश में छुट्टियां बिता कर कार से अपने शहर लौट रहा था . सिविल इंजिनियर विजय ने ही कभी इस रोड को अपने मार्गदर्शन में बनवाया था सो बड़े भावुकता से निहारता जा रहा था कि एक घने पीपल के छांव तले ड्राईवर ने कार रोक दी कि थोडा सुस्ता लिया जाये . विजय भी कार से उतर पड़ा ,ठंडी शीतल छांव ने उसे अतीत में पहुंचा दिया जब इस सड़क का निर्माण कार्य चल रहा था .
       उस दिन घर से विजय बहुत लड़ कर आया था . उसकी पत्नी उम्मीदों से थी और गर्भ में लड़की होने की पुष्टि हो चुकी थी .माँ सहित सभी लोग उसे ख़तम करने की तयारी कर चुके थे . उसकी नजर पड़ी , उबड़ - खाबड़ बंजर सड़क किनारे एक पीपल की दो नन्ही कोंपले कड़ी धूप में भी अपनी हरियाली दर्ज करा रही थी ,तभी एक बुलडोजर सड़क बनाने हेतू समतल करने ,नन्ही जान को कुचलने ही वाला था कि विजय चीख पड़ा .
"क्या धरती को बंजर कर के ही छोड़ोगे ?"
      फिर जब तक सड़क बना ,पीपल सिंचित होता रहा . बेटी की शीतलता से तृप्त  लौटता विजय  बाहें फैला पीपल को देख पितृवत  स्नेह से झूम उठा .



8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लिखती है आप । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

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    1. धन्यवाद मधुलिका जी ,मैं आपके ब्लॉग पर भी अवश्य पढूंगी .

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  2. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 29/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...

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    1. धन्यवाद , कुलदीप जी .मैं आपकी टिप्पणी अभी देख रहीं हूँ . मैं पांच लिंकों का आनंद ,का भी आनंद लेना चाहूंगी .

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  3. इंसान की प्रकृति के प्रति ऐसी क्रूरता का परिणाम कभी न कभी उसे भुगतने पर मजबूर करता है। संवेदनशील जरुरी है। .
    बहुत सुन्दर

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    1. धन्यवाद कविता रावत जी . आपने बहुत सार्थक टिप्पणी की है .

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  4. मै आई हूँ पूरी रचना पढ़ने...
    सादर

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