बेटी ने मना किया था कि बात बराबरी के स्तर पर होनी चाहिए ,पर सुबोध और सुलोचना ने सोचा कि समाज की रीत के अनुसार उन्हें ही अंकुर के घर जाना चाहिए .फल मिठाई और मेवे ले ख़ुशी ख़ुशी अपनी बेटी नीति की शादी की बात करने अंकुर के घर पहुंचें .सब कुछ तो बच्चों ने तय कर रखा था ,एक औपचारिकता थी मिलने की और उनके दोस्ती को रिश्तें का जामा पहनाने की .विजातीय जमाई की स्वीकृति बड़े बेमन से ही दे पाया था पर बेटी की ख़ुशी की खातिर बदलाव को सहजता से लिया .
"देखिये अब हम समधी बनने वालें हैं तो हमारी इज्जत का ध्यान रखना आपका धर्म है ,फिर हम दहेज़ भी नहीं मांग रहें ", होने वाले समधी ने गुरु वाणी में कहा .
"जी"
...और फिर उस इज्जत की कीमत बढती ही गयी .सुबोध और सुलोचना मुहं बाएं अवाक हो सुनते रहें .हर इच्छा के बाद ,
"आखिर हम लड़के वालें हैं ,चार लोगों में नाक नहीं कटें आप बस यही देखिएगा ..." का मन्त्र जाप .
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